योग एवं मानसिक स्वास्थ्य
वर्तमान समय में जब सूचना संचार क्रांति चरम पर है l इसके प्रभाव से व्यक्ति के रहन-सहन , जीवन जीने के ढंग, आचार विचार में बहुत परिवर्तन आता जा रहा है । इन परिस्थितियों में समाज में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के मानसिक दबाव एवं परेशानी से गुजर रहा है । इससे वह स्ट्रेस,एंगजायटी, डिप्रेशन, हाइपरटेंशन आदि से पीड़ित हो रहा है । और यही आगे चलकर गंभीर शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों का रूप धारण कर रही है। सूचना संचार क्रांति के समय में आज के अधिकांश युवा सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से अनगिनत विचारों एवं व्यक्तियों के संपर्क में आता रहते है । ऐसे समय में मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाए रखने में काफी समस्याएं आ रही है । कई बार आज का युवा काम की अधिकता से अपने आसपास के सामाजिक वातावरण को सहज कर नहीं रख पा रहा है। यह भी एक प्रकार के मानसिक तनाव को, अस्वस्थता को जन्म दे रहा है।
मन का स्वरूप अत्यंत सूक्ष्म होता है । यह विचारों, व्यवहार एवं व्यक्तित्व के माध्यम से व्यक्त होता है। मन को ऊर्जा विचारों से प्राप्त होती है। मन की ऊर्जा कम होने पर विभिन्न प्रकार की मानसिक निष्कृष्टता उत्पन्न होती है। यह निकृष्टता व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाती है। तथा मन की ऊर्जा उच्च होने पर व्यक्ति उत्कृष्टता की ओर अग्रसर होता है अर्थात परमार्थ के मार्ग पर आगे बढ़ता है। व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि भजन एवं भोजन दोनों में संतुलन रखा जाए। मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति की भावनात्मक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्थिति के सम्मिलित होने से बनता हैl मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है । भारतीय वैदिक धर्म एवं संस्कृति के ग्रंथो में व्यक्ति को जीवन जीने की कला के बारे में विस्तार से बताया गया है। पतंजलि ऋषि द्वारा प्रदत योग दर्शन में बताया गया है कि योग द्वारा व्यक्ति किस प्रकार मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ रहकर आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है।
"Mental health is a universal human right”
मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मनोविज्ञान द्वारा प्रदत समायोजन का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैl परिस्थिति को अनुकूल बनाने की प्रकिया को समायोजन कहते हैं। इसके अंतर्गत स्वयं का समायोजन एवं व्यक्ति का वातावरण से समायोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है । स्वयं समायोजन में व्यक्ति द्वारा स्वयं का आत्म विश्लेषण, आत्म नियंत्रण , आत्म परिष्कार कर स्वयं को आत्म नियंत्रित किया जाता है । वातावरण से समायोजन में व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज में विचारों , भावनाओं ,कार्यों द्वारा किस प्रकार आपसी लेनदेन करता है एवम संतुलन बनाता है , आता हैl
व्यक्ति के जीवन में संतुलन बनाए रखने में योग की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है । योग का एक अर्थ जोड़ने से होता है , अर्थात आत्मा का परमात्मा से जुड़ना,मिलान होना। अध्यात्म द्वारा भारतीय ऋषियों, मुनियों ने व्यक्ति को स्वस्थ जीवन जीते हुए परमात्मा की प्राप्ति किस प्रकार होगी इस हेतु कई सूत्र एवं सिद्धांत दिए हैं। पतंजलि ऋषि द्वारा योग दर्शन में वर्णित 196 योग सूत्रों में विभिन्न स्तर के व्यक्तियों / साधकों के लिए स्वस्थ जीवन जीने के सूत्र बताए गए हैं। इसमें साधारण श्रेणी के साधक /व्यक्ति को स्वस्थ जीवन जीने के लिए अष्टांग योग दिया गया है। जबकि मध्यम श्रेणी के साधक के लिए तप ,स्वाध्याय , ईश्वर प्रणिधान तीन चरण बताए गए हैं। तथा उत्तम कोटी के साधक के लिए अभ्यास एवं वैराग्य द्वारा उत्तम कोटि का जीवन जीते हुए, ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया गया है।
अष्टांग योग में दिए गए आठ अंग निम्न प्रकार है
1 यम 2 नियम। 3 आसन
4 प्राणायाम 5 प्रत्याहार 6 धारना एचसी
7 ध्यान 8 समाधि
यम के अंतर्गत सत्य, अस्तेय, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अहिंसा पांच चरण आते हैं। तथा नियम के अंतर्गत शौच, संतोष, तप स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान आते है। प्राणायाम में भ्रामरी, अनुलोम विलोम , नाडी शोधन , शीतली प्राणायाम इत्यादि मानसिक स्वास्थ्य प्राप्ति में लाभदायक हैं। सूर्य नमस्कार , शवआसन, योग निद्रा , सर्वांगासन इत्यादि आसन मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन करते हैं। प्रत्याहार में अपनी इंद्रियों को अंतर्मुखी बनाकर नियंत्रित किया जाता है । मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में ध्यान की भी बहुत बड़ी भूमिका है । ध्यान कई प्रकार से किया जाता है तथा इसको करने से व्यक्ति एकाग्रता एवं शांति प्राप्त करता है l उपरोक्त वर्णित आठों अंग में से किसी एक अंग को भी व्यक्ति जीवन में अपनाता है तो वह मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य ,शांति ,प्रज्ञा, विवेक आदि को जीवन में प्राप्त करता जाता है ।
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सूर्य नमस्कार |
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि आज की भाग दौड़ भरे जीवन में मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए योग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके प्रयोग द्वारा व्यक्ति अपने विचारों को सही करके मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकता है एवं जीवन को सही दिशा में ले जा सकता है । जिससे वह अपने व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक, सामाजिक जीवन को संतुलित रखते हुए ओर बेहतर बना सकता है। इस प्रकार व्यक्ति का जीवन योग द्वारा उत्कृष्टता एवं परमात्म पथ पर आगे बढ़ता चला जाता है।
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